Friday, 2 August 2019

डेली पेरेंटिंग कीजिये


डेली पेरेंटिंग कीजिये
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कभी ऐसी परिस्थितियाँ भी आ जाती हैं  जब फाइनल एक्ज़ाम में बच्चे के कम नम्बर आते हैं तब पेरेंट्स इसका दोष सीधा अध्यापक पर या स्कूल पर मढ़ना शुरू हो जाते हैं । अपनी हैरानी और परेशानी जताते हुए वो कहते हैं कि हमारा बच्चे ने तो सालभर खूब मेहनत की है , वो तो पढ़ता रहता था ।

यदि पेरेंट्स अपने रोज़मर्रा के समय से थोड़ा सा वक्त बच्चे के होमवर्क को देखने में लगाएं , PTM नियमित रूप से अटेंड करें , उसकी किताबों कॉपी पर नज़र रखें , तो कभी भी ऐसी हैरान परेशानी वाली परिस्थिति का सामना न करना पड़े । 

हमारे इंस्टिट्यूट में भी कइयों के साथ ऐसा होता है , हमारे यहाँ से पेरेंट्स को बुलाया जाता है , पर कइयों के पास आने का समय ही नहीं होता , या रुचि नहीं दिखाते , फिर यही पेरेंट्स साल के अंत में कम नम्बर आने पर दोषारोपण करना शुरू हो जाते हैं ।

सही तरीका यही है कि आप डेली पेरेंटिंग कीजिये , रोज़ स्कूल डायरी देखिये , रोज़ के कक्षा कार्य , ग्रह कार्य पर नज़र रखिये , PTM नियमित रूप से अटेंड करें और साल भर चलने वाले क्लास टेस्ट का आंकलन करते रहें , तभी साल के अंत में होने वाली परेशानी कभी न होगी ।


बच्चे की लाइफ़ में डल मूमेंट्स भी ज़रूरी हैं


एक अभिभावक होने के नाते हमारी कोशिश अपने बच्चे को हमेशा  खुश रखने की होती है इसके कई कारण भी हो सकते हैं कुछ एकल अभिभावक जो शायद अपराधबोध की भावना से ग्रस्त होते हैं कुछ कामकाजी अभिभावक होते हैं और कुछ अभिभावको  में आपसी तनाव होता है , तो उनके अपने कारण होते हैं  

कहने का मतलब यह  है कि हर माता पिता यही चाहता है कि जितनी देर भी बच्चा उनके साथ हो , वो खुश रहे पर यही सोच कई बार बच्चे के लिए नुकसानदेह हो सकती है अपने बच्चे का शुभचिंतक होने के नाते हमें यह समझना चाहिए कि बच्चे को हर तरह की परिस्थितियों का सामना करने के लिए  तैयार करना है उन्हें यह सिखाना है कि जीवन में हर समय खुशी ही नहीं रहती , कभी अकेलापन , कभी उदासीनता को भी झेलना पड़ सकता है

 एक अभिभावक का यह कर्तव्य है कि बच्चे को सृजनात्मकता से भी जुड़ना सिखाएँ ताकि उसके मस्तिष्क का संतुलित विकास हो सके  और वह अपने खाली समय का सदुपयोग करना जान सके  
कई विषय होते हैं जो रुचिकर नहीं लगते , पढ़ते हुए नीरसता आने लगती है जिस बच्चे ने कभी नीरसता को अनुभव ही नहीं किया , वह कभी भी उस विषय को रुचि से नहीं पढ़ सकता जिस बच्चे की हरेक इच्छा चुटकियों में पूरी हो जाती रहे , उसे कभी इंतज़ार करने की आदत नहीं होगी , फ़लस्वरूप उसमें धैर्य का अभाव रहेगा  

बच्चे को 'आवश्यकता' शब्द के मायने पता होने चाहिये , ये तभी होगा जब उसकी हर माँग को पलक झपकते ही पूरा नहीं किया जाएगा  

बच्चे में धैर्य और सृजनात्मकता जैसे गुणों का होना नितान्त आवश्यक है , जिन्हें विकसित करने में उसका अभिभावक ही उसकी सहायता कर सकता है